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लेखनी कहानी -27-Apr-2022 सागर की गोद में

भाग 4 


तरू को अब पता चल गया था कि आनंद के दिमाग में मेघना बैठी हुईं थी, उस समय । उस समय क्या , वह तो अभी भी बैठी हुई है । जब तक आनंद के दिमाग से वह बाहर नहीं निकलेगी , वह ऑपरेशन नहीं कर पायेगा । क्या करे वह ? क्या मेघना से बात करे ? क्या मेघना इसके लिए उसे अपशब्द नहीं कहेगी ? पर ये तो उसकी भलाई के लिए ही कर रही है वह । जब तक आनंद का दिमाग स्थिर चित्त नहीं होगा , ऐसा जटिल ऑपरेशन वह कर ही नहीं सकता है । पर क्या आनंद इसके लिए तैयार होगा ? क्या उसे मेघना से बात करना अच्छा लगेगा ? 

मेघना की नाराज़गी से ज्यादा आनंद की नाराज़गी मायने रखती है तरू के लिए । मेघना नाराज भी होगी तो क्या हुआ ? कोई विकल्प है क्या उसके पास ? उसे अगर अपना पति जीवित चाहिए तो उसे समर्पण करने में कोई हर्ज नहीं होना चाहिए । जिंदगी में कभी कभी समझौते करने ही पड़ते हैं । कुछ पाने के लिए कुछ खोना भी पड़ता है । उसे लगा कि अगर मेघना को यदि ढंग से समझाया जाये तो वह मान सकती है । जब तक मेघना स्वेच्छा से समर्पण नहीं करेगी, आनंद का उद्देश्य पूरा नहीं होगा । आनंद को वह अच्छी तरह से जानती है । वह जोर जबरदस्ती नहीं करता है । 

इधर तरू मेघना को मनाने की तैयारी कर रही थी, उधर आनंद ने ऑपरेशन की तैयारियां शुरू कर दीं थीं ‌। ज्यादा विलंब होने से संभावनाएं भी कम होती जा रही थीं । पहले ही काफी खून बह चुका था मरीज का । खून की बोतल लगी हुई थी उसके । उसने अपना दिमाग स्थिर करने की बहुत कोशिश की मगर आंखों के सामने बार बार मेघना ही घूम रही थी । आनंद को बहुत मुश्किल टास्क लग रहा था ।

उसने अपने दो कुलीग्स को बुला लिया । वे भी इस विषय के जाने माने डॉक्टर थे । तीनों ने मरीज की हालत पर गहन चर्चा की । उन दोनों ने हाथ खड़े कर दिए और कहा कि इसका बचना संभव ही नहीं है । लेकिन आनन्द ने उम्मीद नहीं छोड़ी थी अभी ।  उसने सिगरेट निकाल ली और धुंए के छल्लों में फिक्र उड़ाने लगा । 

"ऐसा करते हैं बॉस, आप ऑपरेशन की तैयारियां शुरू करो , हम आपकी हैल्प के लिए रहेंगे । आपके निर्देशन में आपकी मदद करेंगे । कहो कैसा आइडिया है, बॉस" ? एक जूनियर ने कहा । 

"दैट्स ए गुड आइडिया । अब ऑपरेशन शुरू कर देना चाहिए हमें । बाकी ऊपरवाला है ना । हमें अपना काम पूरी शिद्दत से करना चाहिए । बाकी बातें भगवान पर छोड़ देनी चाहिए । उम्मीद पर दुनिया कायम है और इस पेशे के मूल में यही तो बात है कि अंत समय तक उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए ‌। ‌‌तो  साथियों, सब लोग अपने अपने काम पर लग जाइए" । डॉक्टर आनंद ने लीड लेते हुए अपना काम शुरू कर दिया । उसे खुद से भी लड़ना था और बीमारी से भी । उसके अंदर भी भूचाल आया हुआ था और मरीज की स्थिति तो भयावह थी ही । शायद आनंद को अपने अंदर के भूचाल से दिक्कत ज्यादा थी । क्या उस वासना रूपी भूचाल से मुक्त हो पायेगा वह ? 

उसने अपने काम पर फोकस किया । बहुत बारीक बारीक नसें होती हैं सिर की । बाल से भी पतली । उन्हें ढूंढ ढूंढकर अपनी जगह पर बैठाना एक दुसाध्य कार्य था । सिर कुचलने से सारी नसें आपस में बुरी तरह से उलझ गई थीं । इसके अलावा कुछ नसों में खून का थक्का जम गया था । उन नसों को काट कर वह थक्का निकालना था । ऐसी बहुत सी नसें थीं जिनमें थक्का जमा हुआ था । सबने मिलकर काम करना शुरू कर दिया । अपने काम में आनंद ने खुद को डुबोकर रख दिया । धीरे धीरे आनंद के दिमाग से मेघना बाहर होने लगी और उम्मीद की किरणें घर करने लगीं  । 

उधर डॉक्टर तरू ने एक कमरे में मेघना को बुलवाया और कहा "तुम्हें तो पता ही है कि तुम्हारे पति की हालत कैसी है । उनके बचने की संभावनाएं लगभग शून्य हैं । एक डॉक्टर आनंद ही हैं जिनकी बदौलत वे बच सकते हैं । बोलो, आपका क्या कहना है" ? 

"मैं क्या कहूं डॉक्टर ? कौन ऐसी पत्नी है जो अपने पति को बचाना नहीं चाहेगी ? मैं पैसा पानी की तरह बहाने को तैयार हूं । आप बताइए कि मुझे क्या करना होगा" ? मेघना ने रो रोकर कहा और तरू के पैर पकड़ लिए । 

"अरे अरे, ये क्या कर रही हो ? मेरे पैर छोड़िए । पैर पकड़ने से कोई आदमी जिंदा थोड़ी हो जाता है ? और , अगर पैर पकड़ने ही हैं तो डॉक्टर आनंद के पैर पकड़िए । आपके पति की जान अब उन्हीं के हाथ में है" । 

"आप जिसके पैर पकड़ने को कहेंगी मैं उसी के पैर पकड़ लूंगी । बस, मेरे पति को अच्छा कर दीजिए । आप जो भी कहेंगी मैं उसे पूरा करूंगी, डॉक्टर" । 
"तो पक्का ? मैं जो भी कहूंगी तुम उसे पूरा करोगी" ? 
"जी, पक्का । आप बताइए कि मुझे क्या करना है ? ये रुपया ये पैसा , सब कुछ लुटाने को तैयार हूं मैं" ? 
"रुपये पैसे के अलावा भी तो कुछ ऐसा होता है जो उनसे भी कीमती हो" ? 

मेघना ने गौर से तरू को देखा । रुपए पैसे से भी कीमती क्या चीज़ है उसके पास ।  वह उन शब्दों के अर्थ खोजने का प्रयास करने लगी । वह समझी या नहीं, पता नहीं यह तरू को पता नहीं चल पाया क्योंकि मेघना चुप ही थी । 

"भगवान ने तुम्हें जो "दौलत" दी है वह हर किसी को नहीं देता है । रुपया पैसा तो बहुत लोगों को दे देता है मगर "हुस्न का खजाना" हर किसी पर नहीं बरसाता है वह । तुम पर ईश्वर ने कुछ विशेष कृपा बरसाई है इसलिए तुम कुछ खास हो । अब इससे ज्यादा और क्या समझाऊं तुम्हें ? तुम खुद समझ सकती हो । औरतें तो पुरुषों का दिल दिमाग तुरंत पढ़ लेती हैं । और तुम एक पढ़ी लिखी समझदार महिला हो , यह बताने की आवश्यकता नहीं है । अब यह तुम्हें तय करना है कि तुम क्या चुनती हो ? अपना पति या अपनी पवित्रता ? अब फैसला तुम्हारे हाथ में है" । इतना कहकर तरू वहां से आ गई । 

मेघना अवाक् रह गई थी यह सुनकर । उसने तो सपने में भी नहीं सोचा था कि डॉक्टर तरू उससे इस तरह की डिमांड करेगी । एक स्त्री होकर दूसरी स्त्री से ये सब कहना क्या संभव है ? तरू ने कितनी आसानी से कह दिया था वह सब । पर वैसा करना क्या उतना ही आसान है ?  उसे डॉक्टर आनंद की आंखों में 'वासना के डोरे' तो नजर आए थे मगर इसके लिए वह इतना गिर जायेगा कि डॉक्टर तरू के माध्यम से वह इस तरह से "मैसेज" दिलावायेगा , यह उसकी कल्पना के बाहर था । और डॉक्टर तरू ? वह भी तो एक औरत है । उसने डॉक्टर आनंद को मना क्यों नहीं किया ? बल्कि उसने यह प्रस्ताव उसके समक्ष रखा, यह भी समझ के बाहर है । अगर ऐसा ही प्रस्ताव वह डॉक्टर तरू के सामने रखती तो क्या वह भी मान लेती ?  मेघना सोचने लगी । 

"पति को बचाऊं या अपनी इज्जत को " ? यही सबसे बड़ा सवाल था उसके सामने । मन कह रहा था कि पति ही उसके लिए सब कुछ है । जब पति ही नहीं रहेंगे तो वह भी जीकर क्या करेगी ? सब कुछ तो उन्हीं से है । ये धन दौलत और ये हुस्न का दरिया । अगर वे नहीं तो इस खजाने का भी क्या मोल है ? क्या करेगी वह इज्जत की टोकरी लेकर ? अगर पति नहीं रहे और इज्जत रही तो क्या करेगी उस इज्जत का ? क्या आचार डालेगी वह इस 'इज्जत' का ? बड़ी दुविधा में पड़ गई थी मेघना । वह कुछ निश्चय नहीं कर पा रही थी । समय गुजरता जा रहा था मगर वह असमंजस के भंवर में ऐसी फंसी हुई थी कि बाहर आने की दूर दूर तक कोई संभावना नजर नहीं आ रही थी । 

उधर, डॉक्टर आनंद और उसके दोनों साथी अपने काम में तल्लीनता से जुटे हुए थे । बाद में दोनों डॉक्टर के घर से कॉल आ गया था । दोनों को ही अर्जेंट जाना पड़ गया था । अब डॉक्टर आनंद अकेला ही रह गया था । वह अपने लक्ष्य के पीछे अकेला ही चल पड़ा । उसने तय कर लिया था कि वह मरते दम तक अपने प्रयास करेगा । अब उसके दिमाग में मेघना नहीं , बल्कि उसकी ड्यूटी थी । एक डॉक्टरी कर्तव्य था । 

जब कोई व्यक्ति डॉक्टर बनता है तब उसे एक शपथ दिलाई जाती है कि वह हमेशा डॉक्टर के पेशे के साथ न्याय करेगा । हर हाल में वह मरीज को बचाने के भरपूर प्रयास करेगा । भगवान का यही आदेश है एक डॉक्टर के लिए । इसीलिए डॉक्टर भगवान कहलाते हैं । जब उसे वह शपथ याद आई तो उसे आशा की किरणें दिखाई देने लगी । सकारात्मक विचारों से डॉक्टर आनंद की आत्मा निर्मल हो गई थी । उसमें जो विकार भरे थे , वे एक एक कर दूर होने लगे थे । अब उसे किसी चीज की ख्वाहिश नहीं थी । सब कुछ तो मिल गया था उसे । धन दौलत , पद, प्रतिष्ठा, स्त्री संसर्ग सब कुछ । अब और क्या चाहिए ? इच्छाओं का कभी अंत होता है क्या ? भौतिक वस्तुओं से पेट भरा है क्या कभी किसी का ? और काम वासना ? राजा ययाति से बड़ा और कौन सा उदाहरण है इस दुनिया में इस संबंध में । वासना के सागर में आकंठ डूबकर भी राजा ययाति की वासना कम नहीं हुई थी  । वृद्ध होने पर भी विषय भोग की इच्छा कम नहीं हुई थी उसकी और इसकी पूर्ति के लिए वह अपने पुत्रों से उनकी जवानी मांग बैठा था । उसके पुत्र 'पुरू' ने उसे अपनी जवानी दे भी दी थी उसके बावजूद उसकी विषय वासना कम नहीं हुई थी । उसे समझ में आ गया था कि इस वासना का कोई ओर छोर नहीं है । यह तो आसमान की तरह अनंत है इसलिए इसके पीछे भागने से कुछ भी हासिल नहीं होगा । अपना कर्तव्य निष्काम भाव से करते रहना ही निष्काम योग है । और जीवन जीने का एकमात्र यही मंत्र है । इस मंत्र से यह जीवन सफल हो जाता है ।  यह मूलमंत्र आनंद को अचानक मिल गया था । इस मूलमंत्र के मिलने से उसका मन एकदम हल्का हो गया । दिमाग एकदम साफ सुथरा और मन एकदम पवित्र हो गया था । मेघना , तरू और न जाने कौन कौन , काम, वासना सब पीछे छूट गये थे । निष्काम कर्म रूपी हथियार के साथ वह अपने काम में अकेला ही जुट गया था । 

कहते हैं कि लगातार मेहनत करने से सफलता अवश्य मिलती है । और जब उद्देश्य पवित्र हो तो ईश्वर भी मेहरबान हो जाता है । दो दिनों की जानलेवा कड़ी मेहनत का परिणाम था कि मेघना के पति का सही ऑपरेशन हो गया और वह खतरे से बाहर हो गया था । थका हारा डॉक्टर आनंद घर आ गया । 

घर आते ही उसने अपना मोबाइल स्विच ऑफ किया और तुरंत सो गया । पिछले दो दिनों से उसने पलकें भी नहीं झपकाई थी । लगभग 15 घंटे सोने के बाद जब वह जागा तब वह अपने आपको तरोताजा महसूस कर रहा था । 

उसके नौकर ने कहा "डॉक्टर तरू आईं हैं आपसे मिलने । उन्होंने आपको बहुत सारी कॉल की थीं मगर आपने रिसीव नहीं कीं इसलिए मिलने चली आईं । बहुत देर से इंतजार कर रही हैं आपका" । 

डॉक्टर आनंद ने कुछ सोचा और कहा "उनसे कह दो कि मैं अभी सो रहा हूं । उन्हें जाने के लिए भी कह देना" । और डॉक्टर आनंद अपने दैनिक क्रिया कलापों में व्यस्त हो गया । उसे अब तरू या किसी और में कोई रुचि नहीं थी । 
 
नहाने के बाद उसने हल्का नाश्ता लिया और अपना मोबाइल स्विच ऑन किया । बहुत सारी कॉल पड़ी थीं और मैसेज तो गिनने योग्य ही नहीं थे । डॉक्टर तरू की सबसे अधिक कॉल और मैसेज थे । उसके "बैचलर फोरेवर" ग्रुप की महिलाओं के बहुत सारे मैसेज थे जिनमें "रिक्वेस्ट" भेजी गई थी । डॉक्टर आनंद के मुख पर एक मुस्कान आ गई और उसने उस ग्रुप से एक्जिट कर लिया और उस ग्रुप को डिलीट भी कर दिया । आज उसे बड़ा अच्छा लग रहा था यह सब करके । कभी उसे स्त्री संसर्ग अच्छा लगता था मगर आज  उनसे दूर रहना उसे बड़ा अच्छा लग रहा था । उसे ऐसा लगा कि जैसे वह एक पिंजड़े से आजाद हो गया था । 

उसने एक विपश्यना कैंप ज्वाइन कर लिया । सात दिन का कोर्स था वह । योग, प्राणायाम, दर्शन और तत्व ज्ञान की बातें उस कैंप का हिस्सा थे । हल्का भोजन और मौन व्रत । बस, सात दिनों तक यही काम ।

एक दिन योग गुरु से उसने कामनाओं पर बातचीत की थी 
"क्या कामनाओं का कोई अंत है" ? 
"नहीं, कामनाएं अनंत हैं" 
"इन से कैसे निजात मिल सकती है, गुरुजी" ? 
"मन को वश में करने से ही इनसे निजात मिल सकती है, वत्स । और कोई समाधान नहीं है ‌‌। सबसे बड़ा फैक्टर है मन । यहां पर कामनाओं का अथाह भंडार होता है । मन को वश में करने के लिए अच्छे अच्छे विचारों को अपने दिमाग में स्थान देना चाहिए । जब विचार शुद्ध होंगे तो मन भी निर्मल होगा । इसके लिए भोजन भी सात्विक ही करना होगा ‌‌इन सबका परिणाम यह होगा  कि मन कामनाओं के बीयाबान जंगल में भटकेगा नहीं । और यही काम हमें करना है । जिसने कामनाओं पर नियंत्रण कर लिया समझो उसने जीवन पर नियंत्रण कर लिया । इस जीवन में हर एक मनुष्य का यही लक्ष्य होना चाहिए" । 

डॉक्टर आनंद को यह ज्ञान मिल गया था और उसने जिंदगी में अनुभव भी कर लिया था कि विषय वासनाएं अनंत हैं । जिस तरू को वह सबसे श्रेष्ठ समझ रहा था , मेघना को देखकर वह तुच्छ लगने लगी थी । जब मेघना से भी सुंदर और कोई स्त्री मिल जायेगी तब मेघना हेय लगने लगेगी ।  भोग विलास की जिंदगी इसी तरह से चलती है । यह तो एक गहरी खाई है जिसमें आदमी एक बार यदि गिर जाये तो वह कभी उससे बाहर नहीं आ पाये । डॉक्टर आनंद को जीवन सार मिल गया था । 

विपश्यना शिविर के बाद डॉक्टर आनंद की जिंदगी अलग तरह की हो गई थी । बैचलर कैंप की बहुत सी महिलाएं उसके घर आ गई उसका "साथ" पाने के लिए मगर वह किसी से भी नहीं मिला था । तरू तो बहुत बार आई थी उससे मिलने, मगर वह उससे भी नहीं मिला था । उसे अब इन सबसे घृणा सी हो गई थी ।

एक दिन वह अपने घर में ही बैठा था कि उसके नौकर ने आकर कहा "साहब, कोई मेघना नाम की औरत आपसे मिलने आई है" । 

मेघना का नाम सुनकर डॉक्टर आनंद एकदम से चौंका । आनंद को अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ । मेघना और उसके पास ? उसने सोचा कि उसने शायद गलत सुना है इसलिए उसने कन्फर्म करने के लिए पुनः पूछा "कौन है" ? 
"कोई मेघना है" । नौकर ने बताया ।

डॉक्टर आनंद सोच में पड़ गया । मेघना क्यों आईं है ? उसका पति तो अब एकदम ठीक हो गया है फिर क्या बात हो सकती है ? यह तो उससे बात करने पर ही पता चल पायेगा । डॉक्टर आनंद ने उसे ड्राइंग रूम में बैठाने के लिए कहा । 

जब वह ड्राइंग रूम में पहुंचा तो वहां पर मेघना सोफे पर बैठी थी । हल्की नीली आसमानी साड़ी में वह कोई परी सी लग रही थी । चेहरे पर थोड़े असमंजस के भाव थे । अपनी ही धुन में कहीं खोई हुई थी वह । उसे यह भी पता नहीं चल पाया कि डॉक्टर आनंद वहां आ गए थे ‌‌‌‌।

"कहिए मैम, कैसे आना हुआ ? आपके पति तो ठीक हैं ना अब" ? 
इन शब्दों से चौंकी थी मेघना । उसने हाथ जोड़कर आनंद को अभिवादन किया और कहने लगी "डॉक्टर आनंद, आपने मेरे पति को एक नई जिंदगी दी है । आपका यह अहसान मैं जिंदगी भर नहीं चुका पाऊंगी । आपने न केवल मेरे पति को बल्कि मुझे भी एक नई जिंदगी दी है । आप मेरे लिए भगवान का स्वरूप हैं । यह काम केवल भगवान ही कर सकते थे और आपने  वह काम कर दिखाया । मैं आपको भगवान की तरह पूजती हूं रोज" । 

डॉक्टर आनंद चुपचाप सुन रहा था । बोला कुछ नहीं । बस , शून्य में देखता रहा ‌‌। डॉक्टर आनंद को शांत बैठे देखकर मेघना कहने लगी 

"मुझे सब पता है डॉक्टर कि आपके दिमाग में क्या चल रहा था उस समय । मुझे डॉक्टर तरू ने सब बता दिया था" । 

अब चौंकने की बारी आनंद की थी । तो क्या तरू ने उसकी भावनाओं से इसे अवगत करा दिया था ? इसने क्या सोचा होगा मेरे बारे में ? कितना निर्लज्ज हूं मैं ? और भी न जाने क्या क्या । ये तरू ने ऐसा क्यों किया था" ? मैंने तो कहा नहीं था तरु को । तो क्या तरू ने अपनी इच्छा से ही ऐसा किया ? मगर क्यों ? 

थोड़ी देर खामोशी छाई रही थी उन दोनों के बीच में । फिर मेघना ही बोली "मैं भयंकर असमंजस में थी सर, उस समय । मैं निश्चय नहीं कर पा रही थी कि मुझे क्या करना चाहिए और क्या नहीं ? जब मैं कुछ तय नहीं कर पाई तो फिर मैंने भगवान के हाथ में छोड़ दिया सब कुछ । और भगवान की मर्जी से आपने दिन रात मेहनत करके यह असंभव काम संभव कर दिखाया । इस घटना ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया और आपके बारे में जो धारणा शुरू में मेरे मन में बनी थी उसमें धीरे धीरे बदलाव आने लगा था । मैं आपसे झूठ नहीं बोलूंगी , डॉक्टर । उस दिन आपकी आंखों में मुझे वासना का सागर उफनता नजर आया था । डॉक्टर तरू ने तो स्पष्ट शब्दों में सब कुछ कह ही दिया था । तब मुझे आपसे बहुत घृणा हो गई थी । मगर आपने जिस तरह अपनी वासना पर विजय पाई और अपने कर्तव्य में डूबकर जिस तरह दिन रात लगे रहे जिसके कारण मेरे पति की जान बच पाई । इसने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया और आपकी नकारात्मक छवि मेरे मन से धीरे धीरे मिटने लगी । 

मगर मैं कभी कभी अपने दिल पर बोझ सा महसूस करती थी और सोचती थी कि आपने दो दिन और दो रात इतनी मेहनत से वह ऑपरेशन किया था ‌‌अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया था तो क्या मैं आपके लिए कुछ भी नहीं कर सकती हूं ? यह भाव जब भी मेरे मन में आता मैं ग्लानि से भर जाती थी । मेरा दिल बैठ जाता था और मैं फिर से असमंजस में फंस जाती थी । फिर सोचती कि क्या तन की पवित्रता इतनी जरूरी है ? आपने इतना त्याग किया है तो क्या मैं कुछ भी त्याग नहीं सकती हूं ? तन का क्या है ? मिलन तो दो आत्माओं का होता है, तन तो संतानोत्पत्ति का माध्यम है बस , और कुछ नहीं । यदि इस तन से कोई खुश हो रहा हो और वह व्यक्ति ऐसा हो जिसने उसके पति को जिंदा कर दिया हो तो इस तन को ऐसे व्यक्ति को सौंपने में संकोच क्यों ?  और यह संकोच मुझे अंदर ही अंदर खाये जा रहा था । आज मैं उस संकोच को घर की खूंटी से टांग कर आई हूं और हिम्मत करके आपके पास कर्ज उतारने आई हूं । मेरे बदन को स्वीकार करके  आज मुझे उऋण कर दीजिए डॉक्टर साहब । मैं यह कर्ज लेकर ज्यादा जिंदा नहीं रह सकती हूं । आज मैं अपने आप को आपके समक्ष समर्पित करती हूं" ‌‌यह कहकर मेघना ने अपनी साड़ी का पल्लू गिरा दिया और आनंद के सम्मुख खड़ी हो गई । 

आनंद ने मेघना की आंखों में देखा । वहां समर्पण के भाव थे । अहसान उतारने के भाव थे और एक तरह से उसके पति की जिंदगी का मोल चुकाने के भाव थे । उसके होंठों पर एक मुस्कुराहट आ गयी । वह कहने लगा 

 "क्षमा कीजिए मैम , मेरी वजह से आपको इतनी तकलीफ़ उठानी पड़ी । हां, आज मैं यह स्वीकार करता हूं कि आपके सौंदर्य को देखकर मैं पागल सा हो गया था । आपके बदन की मादकता ने मेरे होश छीन लिये थे और मैं काम वासना के अंधे कुंए में गिर पड़ा था । उस समय मुझे अपनी जिंदगी अधूरी लगने लगी थी । बस एक ही ख्वाहिश थी कि किसी भी तरह आपको हासिल कर लूं । मगर मैंने अपनी भावनाओं पर थोड़ा सा नियंत्रण रखा और आपके समक्ष मैं कुछ मांग लेकर नहीं आया था । मगर मन में इस कमनीय काया की कामना अवश्य थी । मगर मैं अपनी वासना पर नियंत्रण रखने में कामयाब हो गया । उस दिन मुझे मेरा कर्तव्य बोध याद आ गया और वह कर्तव्य बोध मेरी ढ़ाल बन गया । उस दिन मुझे मालूम हुआ कि मैं अपनी इच्छाओं का दास बन चुका था । क्या अच्छा है और क्या बुरा ? मैं सब कुछ भूल चुका था । मगर आपने मुझे खुद से मिलवा दिया था । आपका शुक्रिया अदा करने के लिए शब्द नहीं हैं मेरे पास । मैं आपका जन्मों जन्मों तक आभारी रहूंगा कि आपने मुझे उस दलदल से बाहर निकाल दिया । आपका यह अहसान मैं जिंदगी भर नहीं भूलूंगा" । कहकर आनंद मेघना के कदमों में बैठ गया । 

"एक सती, पतिव्रता नारी के चरणों की धूल लेकर मेरे सारे पाप धुल गए हैं । इतनी विपरीत परिस्थितियों में भी आप किसी दबाव में नहीं आईं और आपने वही किया जो आपको करना चाहिए था । मैं आपकी बुद्धि , साहस, नारी धर्म और पति परायणता की कद्र करता हूं मैम । आप तो सावित्री का अवतार सिद्ध हुईं हैं । यह आपकी साधना ही थी जो आपके पति को मौत के मुंह में से खींच लाई ‌‌मैं अपने उस व्यवहार पर शर्मिन्दा हूं और सजा भुगतने के लिए तत्पर हूं । आप मुझे सजा देंगी ना" ? 

मेघना अवाक रह गई  । वह तो सोच रही थी कि आनंद ने जो उपकार उस पर किया है , दिन रात एक करके उसके पति को बचाया है , तो उसका भी कर्तव्य बनता है कि वह उसके "पारिश्रमिक" का भुगतान करे । आनंद को तो पारिश्रमिक के रूप में उसका शरीर ही चाहिए था न । तो आज आ गई ना पारिश्रमिक भुगतान करने के लिए । मगर यहां तो माहौल ही दूसरा हो गया है ।  डॉक्टर तरू ने भी तो मुझे डॉक्टर आनंद की इच्छा बताई थी तो क्या वह ग़लत थी ? । तो क्या तरू ने खुद से ही कहा था वह सब कुछ या डॉक्टर आनंद के कहने पर कहा था ? क्या इस बारे मैं डॉक्टर आनंद से पूछना उपयुक्त रहेगा" ? 

वह इसी उधेड़बुन में लगी रही । आनंद उसके चेहरे के भावों को देख रहा था । जिस तरह पलंग पर चादर बार बार बिछाई और हटाई जा रही हो, ऐसे ही भाव मेघना के चेहरे पर आ रहे थे और जा रहे थे , मगर उसकी समझ में कुछ नहीं आया था " । पता नहीं यह सच है या वह सच था ? 

"आप कुछ चिंतित सी लग रही हैं मेघना जी" ? 
"नहीं डॉक्टर, थोड़ी परेशान हूं । उस दिन आपको पता है कि डॉक्टर तरू ने मुझे क्या क्या कहा" ? 
"नहीं, मुझे नहीं मालूम कि डॉक्टर तरू ने आपको क्या क्या कहा ? अगर बता सकती हैं तो बता दीजिए जिससे मुझे भी पता चल जाये" । 
ये शब्द सुनकर मेघना बुरी तरह से चौंकी थी । इसका मतलब था कि तरू ने जो कहा था वह डॉक्टर आनंद से पूछकर नहीं कहा था । "उन्होंने मुझे कहा कि मैं अपने आप को आपके हवाले कर दूं" ? 
"क्या ऐसे कहा उन्होंने" ? 
"हां, ऐसे ही कहा था उन्होंने । क्या ये कहने के लिए आपने उन्हें कहा था" ? 
"नहीं , बिल्कुल नहीं । उन्होंने स्वयं: ही ऐसा कहा होगा । मुझे बताया भी नहीं उन्होंने " । 

मेघना सोच में पड़ गई । ये वो आनंद नहीं था । वो आनंद तो कामान्ध था मगर यह आनंद एक तपस्वी आनंद था । दोनों आनंद में कोई मुकाबला नहीं था । इस आनंद को उसने पहली बार ही देखा था । बहुत अच्छा लगा था इस आनंद से मिलकर । एक तपस्वी, योगी, जितेंद्रिय आनंद । ऐसे तपस्वी तो पूजे जाने योग्य हैं । कैसा कायाकल्प हो गया था आनंद का । और उसका मन श्रद्धा से भर गया । वह नीचे झुकी और उसने आनंद के चरण स्पर्श कर लिये । 
"अरे अरे ये क्या कर रही हो" ? 
"एक 'मुनि' के चरण स्पर्श कर रही हूं, बस । आपने तपस्या के बल पर ये मुकाम हासिल किया है तो आप पूजनीय हुए ना" । दोनों व्यक्ति मेघना और आनंद, किस तरह ऊपर उठे थे , आज पता चल गया था । आदमी के गुणों में निखार संकट के समय में ही आता है । यह बात आज समझ में आई थी । 

मेघना को डॉक्टर तरू की याद आ गई । डॉक्टर आनंद के लिए तरू किस हद तक चली गईं थीं । कितना प्यार करती है तरू डॉक्टर आनंद से । दोनों की जोड़ी कितनी खूबसूरत है । कितना अच्छा हो अगर डॉक्टर तरू और डॉक्टर आनंद विवाह कर लें ।

"डॉक्टर साहब , एक बात कहूं आपसे। आप बुरा तो नहीं मानेंगे न ? बात भी कुछ वैसी ही है । आप डॉक्टर तरू से शादी कर लीजिए । वे आपके लिए ही बनी हैं । उनसे बेहतर और कोई नहीं है आपके लिए इस धरती पर । मेरी यह विनती मान लीजिए डॉक्टर "। और मेघना चली गई । 

डॉक्टर आनंद वहीं पर जड़वत खड़ा रहा । क्या वाकई ? उसने ठंडे दिमाग से सोचा और कार लेकर चल पड़ा । 

तरू डॉक्टर आनंद से उपेक्षा पाकर चिड़चिड़ी सी हो गई थी । बात बात पर झल्लाने लगी थी वह । एक एक पेशेंट देख रही थी और बड़बड़ा भी रही थी वह  । जब दिमाग में उथल पुथल मची हो तो कुछ भी अच्छा नहीं लगता है । 

अगले पेशेंट की पर्ची आ गई थी उसके पास । उसने नाम पुकारा "आनंद" । नाम बोलकर वह चौंकी । सामने देखा तो डॉक्टर आनंद खड़े थे । पेशेंट बनकर । वह अचकचा गई । 
"सर आप ! इस समय और यहां ? और वह भी पेशेंट के रूप में" ? 

"तुम्हारा बीमार हूं तो मरीज बन कर ही आऊंगा ना । मेरा इलाज कर दो डॉक्टर साहिबा । बहुत बीमार हूं मैं" । हाथ जोड़कर आनंद बोला
"क्या बीमारी है" ? मुस्कुराते हुए तरू ने पूछा ।
"एक बीमारी हो तो बताऊं ? आंखों में नींद नहीं आती क्योंकि वहां तुम रहती हो । ख्वाबों में भी तुम ही आती हो । दिल धक धक करता है । तुम्हारा नाम रटता रहता है । तुम तो प्यार का सागर हो तरू । अथाह सागर । दो चार बूंदें मुझे भी पिला दो ना तरू । आज मैं सागर की गोद में बैठने आया हूं, जीवन भर के लिए । क्या बैठने दोगी " ? 

तरू की आंखों से सागर बहने लगा "सर, आपने तो आज एक अहिल्या का उद्धार कर दिया है । आइए ना । मेरी बांहों में समा जाइए "। आनंद और तरू दोनों विवाह बंधन में बंध गए । 

हरिशंकर गोयल "हरि" 
27.4.22 

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6 Comments

Gunjan Kamal

30-Apr-2022 01:16 PM

शानदार

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Hari Shanker Goyal "Hari"

30-Apr-2022 04:27 PM

धन्यवाद मैम

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Zainab Irfan

30-Apr-2022 09:52 AM

👏👌🙏🏻

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Hari Shanker Goyal "Hari"

30-Apr-2022 04:27 PM

💐💐🙏🙏

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Punam verma

30-Apr-2022 09:37 AM

बहुत खूब कहानी sir , और dr. आनंद की तरह ही हर किसी को सुधार की आवश्यकता है । चाहे स्त्री हो या पुरुष।

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Hari Shanker Goyal "Hari"

30-Apr-2022 04:27 PM

धन्यवाद मैम

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